Saturday, July 19, 2014

भीड़.....

भीड़ अब व्यथित नहीं 
लज्जित भी नहीं
रोज ही औंधे मुँह
निर्वस्त्र पड़ी स्वतंत्रता भी
नहीं खींच पाती ध्यान
नहीं आता अब कलेजा मुँह को
उतारी जाती हैं, तस्वीरें
'प्रथम' होने की होड़ में
ब्रेकिंग न्यूज़ में बार-बार
दिखेगा हर कोण !

दुखद घटना जो हुई है
सो, आएँगी संवेदना भी
हर दल की, एक दूसरे पर
दोष मढ़ने की उत्सुकता लिए.
इधर लुटती रहेगी अस्मिता
चादर के अंतहीन इंतज़ार में
उधर बिछेगी दरिंदगी सड़कों पर.
सभ्यता और संस्कारों के
कई पुख़्ता सबूत मिलेंगे
उन जिस्मों से बहते लहू में !

होगी जाँच, आक्रोशित चर्चा
क़ानून के खिलाफ 
कुछ गुमनाम आवाज़ें उठेंगीं
निकलेगी रैली, होगा मौन,
शायद जलें मोमबत्तियाँ भी.
सारे तमाशों के बाद
वही खून से सना अख़बार
बिछेगा अलमारी में.

सुनाई देते रहेंगें 
अब और भी ऐसे
'आम' समाचार
'आम' जनता के
'आम' जनता के लिए,
बदबू मारती, वस्त्र-विहीन
बेहद घिनौनी मिलेगी,
एक और लहूलुहान लाश
हर रोज ही
अपने इस विकृत प्रजातंत्र की
अपने ही बने किसी चौराहे पर !

-प्रीति 'अज्ञात'

*.पर तुम विचलित न होना, ये तुम्हारा 'अपना' जो नहीं ! 'भीड़' का कोई नहीं होता, अपना चेहरा भी नहीं....यही 'ख़ास पहचान' है, इसकी ! 'आम' इंसान होना, क्या 'खास' ??

18 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ४५ साल का हुआ वो 'छोटा' सा 'बड़ा' कदम - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  2. प्रीती जी बहुत ही कडवा सच कहा आपने। अपाहिज होते समाज को आपने बेहतरीन आइना दिखाया है

    ReplyDelete
  3. एक एक शब्द सच कह रहा है
    मार्मिक अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  4. संवेदनशील .. मन को व्यथित करती हैं आपकी पंक्तियाँ ...
    हम भी तो हिस्सा मात्र ही हैं इस भीड़ के ...

    ReplyDelete
  5. बिल्कुल खरी खरी बात कह दी………सुन्दर भाव संयोजन्।

    ReplyDelete
  6. कटु सत्य, बेहद सटीक और मर्मस्पर्शी

    ReplyDelete
  7. कडवा और भयंकर सच। शर्म आती है अपने आप पर कि कुछ भी क्यूं नही कर पाते हम।

    ReplyDelete
  8. ओह! मर्मस्पर्शी ..

    ReplyDelete
  9. Jaroori mudda uthaya hai aapne, prabahvshali prastutikaran hai.

    ReplyDelete
  10. पोस्ट पर आने और प्रतिक्रिया देने के लिए आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया !

    ReplyDelete
  11. ​तीखे शब्द हैं आपके , लेकिन इससे भी ज्यादा दर्द और पीड़ा ऐसे समाज में रहने वाले और झेलने वालों को सहना पड़ता है !

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, बस वही दर्द लिखने की कोशिश की है ! पोस्ट पर प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद !

      Delete
  12. Bahut marmsparshi bhivyakti ..ek peedadeh saty...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत आभार आपका !

      Delete