बीती हुई यादों का जमघट,
अब भी हमारे साथ है.
खोए, सारे पल वो अपने,
बस दर्द का एहसास है.
अपनी ही मर्ज़ी से..., झूठे
रिश्तों को खारिज़ किया.
आज आँसू बन वो निकले,
हमको लावारिस किया.
दोस्त कहने को बहुत से,
पर साथ में कोई नहीं.
अश्क़ अब बहते रगों में,
आँख ये सोई नहीं.
अपनी किस्मत के हैं मालिक,
क्या है, जो ठोकर खाएँगे
तन्हा ही आए जहाँ में,
तन्हा ही हम जाएँगे...!
- प्रीति 'अज्ञात'
जीवन का सार है आखिरी पंक्तियाँ. बात यही है कि समय रहते सब यह समझ जाएँ. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteधन्यवाद, निहार रंजन जी ! :)
Deleteसत्य है जीवन का .. हर किसी को तन्हा ही जाना होता है ... फिर से तन्हा आने के लिए ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ...
आभार, दिगंबर जी ! :)
Deleteबहुत ही सुन्दर ! आखिरी पंक्तियाँ एकदम सटीक हैं
ReplyDeleteधन्यवाद, योगी सारस्वत जी !
DeleteBahut sunder prastuti steek ekdum!!
ReplyDeleteशुक्रिया, परी जी ! :)
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