चाल से, अंदाज़ से हर रंग इनका जानती हूँ
रिश्तों के इन गिरगिटों को ख़ूब मैं पहचानती हूँ
मंदिरो-मस्ज़िद में जाता जानकर मैं क्या करूँ
आदमी दिल का भला हो इतना ही बस मानती हूँ
लाल, केसरिया, हरे हों से मुझे मतलब नहीं
झण्डा तो इक ही तिरंगा शान मेरी जानती हूँ
ये अलग बस बात है कि बोलती अब कुछ नहीं
लाख अच्छे का करो तुम ढोंग सब पहचानती हूँ
क्या पता मैं कब मिलूँगी या मिलूँगी भी नहीं
खोज में तेरी मग़र मैं खाक़ दर -दर छानती हूँ
मेरे हाथों की लक़ीरें रोकती हैं अब मुझे
टूटते तारे से जब कोई भी मन्नत माँगती हूँ
- प्रीति 'अज्ञात'
रिश्तों के इन गिरगिटों को ख़ूब मैं पहचानती हूँ
मंदिरो-मस्ज़िद में जाता जानकर मैं क्या करूँ
आदमी दिल का भला हो इतना ही बस मानती हूँ
लाल, केसरिया, हरे हों से मुझे मतलब नहीं
झण्डा तो इक ही तिरंगा शान मेरी जानती हूँ
ये अलग बस बात है कि बोलती अब कुछ नहीं
लाख अच्छे का करो तुम ढोंग सब पहचानती हूँ
क्या पता मैं कब मिलूँगी या मिलूँगी भी नहीं
खोज में तेरी मग़र मैं खाक़ दर -दर छानती हूँ
मेरे हाथों की लक़ीरें रोकती हैं अब मुझे
टूटते तारे से जब कोई भी मन्नत माँगती हूँ
- प्रीति 'अज्ञात'