मेरे कितने अपने चेहरे
जिन्हें लील लिया है तुमने
और वो भी जिनकी उपस्थिति
अब भी जीने की आस फूँकती है मुझमें
हर बार ही गुजरी हूँ क़रीब से
उनकी असहनीय पीड़ा में
देखा है बेबस आँखों ने
मातृत्व के झरने को कटते हुए
जैसे कोई बहता हुआ सोता
दूर कर दिया गया हो अचानक
अपनी उद्गम-स्थली से
तुम्हारी विशाल बहुगुणित कोशिकाओं का
निवारण ही एकमात्र किस्सा नहीं है, विज्ञान का
यह मांस-पेशियों को निर्ममता से कुरेदता
सम्पूर्ण जीवन-दर्शन है
जिसके दर्द की शिराएँ नहीं होती
किसी एक हिस्से तक ही सीमित
काले घने केशों का पतझड़ और
उभारों का देह में ही
धप्प-से विलुप्त हो जाना
तो बस.........
बाहरी बातें भर हैं, पर
दुःख के दरिया को भीतर तक
मसल-मसल घोंटती है यह प्रक्रिया
जाता है हाथ स्वत: ही उस विलीन भाग पर
हृदय बिलखता है चीख-चीखकर
और लाख ना-नुकुर के बाद भी
बंजर हुई भूमि पर
सिलिकॉन की छोटी गद्दियाँ
बना ही लेती हैं अपना आशियाना
यूँ भी होता है उसके बाद कभी कि
रंगीन स्कार्फ़ की छाँव तले
घुँघराले नन्हे बालों की आमद देख
एक बहादुर स्त्री दर्पण में फिर मुस्कुराती है
सँभालने लगती है अपना बसेरा
उम्मीद के मसनद पर टिका जीवन
कभी ठहरता, तो कभी चलता है अनवरत
इधर बच्चों की सपनीली दुनिया में
अठखेलियाँ करता है चमचमाता भरोसा
कि माँ अभी जीवित है!
- प्रीति 'अज्ञात'
#Breast-cancer
जिन्हें लील लिया है तुमने
और वो भी जिनकी उपस्थिति
अब भी जीने की आस फूँकती है मुझमें
हर बार ही गुजरी हूँ क़रीब से
उनकी असहनीय पीड़ा में
देखा है बेबस आँखों ने
मातृत्व के झरने को कटते हुए
जैसे कोई बहता हुआ सोता
दूर कर दिया गया हो अचानक
अपनी उद्गम-स्थली से
तुम्हारी विशाल बहुगुणित कोशिकाओं का
निवारण ही एकमात्र किस्सा नहीं है, विज्ञान का
यह मांस-पेशियों को निर्ममता से कुरेदता
सम्पूर्ण जीवन-दर्शन है
जिसके दर्द की शिराएँ नहीं होती
किसी एक हिस्से तक ही सीमित
काले घने केशों का पतझड़ और
उभारों का देह में ही
धप्प-से विलुप्त हो जाना
तो बस.........
बाहरी बातें भर हैं, पर
दुःख के दरिया को भीतर तक
मसल-मसल घोंटती है यह प्रक्रिया
जाता है हाथ स्वत: ही उस विलीन भाग पर
हृदय बिलखता है चीख-चीखकर
और लाख ना-नुकुर के बाद भी
बंजर हुई भूमि पर
सिलिकॉन की छोटी गद्दियाँ
बना ही लेती हैं अपना आशियाना
यूँ भी होता है उसके बाद कभी कि
रंगीन स्कार्फ़ की छाँव तले
घुँघराले नन्हे बालों की आमद देख
एक बहादुर स्त्री दर्पण में फिर मुस्कुराती है
सँभालने लगती है अपना बसेरा
उम्मीद के मसनद पर टिका जीवन
कभी ठहरता, तो कभी चलता है अनवरत
इधर बच्चों की सपनीली दुनिया में
अठखेलियाँ करता है चमचमाता भरोसा
कि माँ अभी जीवित है!
- प्रीति 'अज्ञात'
#Breast-cancer
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, खाना खजाना - ब्लॉग बुलेटिन स्टाइल “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDelete