Wednesday, September 28, 2016

हौसला बढ़ता गया

दोस्तों की दुश्मनी को माफ़ दिल से है किया
दिल पे जो गुजरी भुलाया हौसला बढ़ता गया
कौन किसका है यहाँ किसने गिराया आसमां 
भौंचक हुई आँखें मग़र फिर हौसला बढ़ता गया

हम थे अहमक़ मानके इक सीख ली आगे बढ़े 
याद की ग़लती जुबानी हौसला बढ़ता गया 
भीड़ के चेहरे में शामिल शख़्स हर गुमनाम है 
थाम के झंडा चले फिर हौसला बढ़ता गया

थी शिक़ायत रोज ही ज़ालिम जमाने से मगर 
ग़म को जब-जब भी तराशा हौसला बढ़ता गया
अपने काँधे गिरके रोये और जब हंसने लगे
मौत को दी पटखनी फिर हौसला बढ़ता गया
-प्रीति 'अज्ञात'

1 comment:

  1. वाह दीदी, क्या बेहतरीन कविता है !

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