जो क़िताबें कह नहीं पातीं
वो पाठ अनुभव सिखाता है
जीवन की भूलभुलैया में
कोई बैकग्राउंड स्कोर-सा
बजता है पुराना संगीत
ज़िंदगी के पहाड़े अब
उलटे ही चला करते हैं
रंगहीन दुनिया में मुश्किल है
जीवन का गणित समझ पाना
मुश्किल है पहचान अपनों की
कि हर परिस्थिति में
बदले जाते हैं नियम
चरमराहट की
खीजती आवाज के साथ
खुलते हैं दिलों के
सुस्त दरवाजे
चेहरे पर
बोझ की तरह
लटकी हंसी
करती विवश अभिवादन
पर चुगलखोर आँखों से
झांक ही जाती असलियत
कि इंतज़ार यहाँ
था ही नहीं कभी
सूना मन-आँगन
स्वीकारता नियति
पर दुःख ज़िद्दी बच्चे-सा
चला ही आता है
यादों की ऊंची मेड़ को
फलाँगते हुए
है विडंबना कैसी
कि सब कुछ
जानते-समझते हुए भी
इंसान, उम्र-भर पलटता है
वही भीगे पन्ने
जिनकी एक्सपायरी डेट बीते
बरसों बीत गए
फिर भी न जाने क्यों
यादों के लेटर-बॉक्स में
भीतर से कुण्डी नहीं होती......
© 2015 प्रीति 'अज्ञात'. सर्वाधिकार सुरक्षित
वो पाठ अनुभव सिखाता है
जीवन की भूलभुलैया में
कोई बैकग्राउंड स्कोर-सा
बजता है पुराना संगीत
ज़िंदगी के पहाड़े अब
उलटे ही चला करते हैं
रंगहीन दुनिया में मुश्किल है
जीवन का गणित समझ पाना
मुश्किल है पहचान अपनों की
कि हर परिस्थिति में
बदले जाते हैं नियम
चरमराहट की
खीजती आवाज के साथ
खुलते हैं दिलों के
सुस्त दरवाजे
चेहरे पर
बोझ की तरह
लटकी हंसी
करती विवश अभिवादन
पर चुगलखोर आँखों से
झांक ही जाती असलियत
कि इंतज़ार यहाँ
था ही नहीं कभी
सूना मन-आँगन
स्वीकारता नियति
पर दुःख ज़िद्दी बच्चे-सा
चला ही आता है
यादों की ऊंची मेड़ को
फलाँगते हुए
है विडंबना कैसी
कि सब कुछ
जानते-समझते हुए भी
इंसान, उम्र-भर पलटता है
वही भीगे पन्ने
जिनकी एक्सपायरी डेट बीते
बरसों बीत गए
फिर भी न जाने क्यों
यादों के लेटर-बॉक्स में
भीतर से कुण्डी नहीं होती......
© 2015 प्रीति 'अज्ञात'. सर्वाधिकार सुरक्षित
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