Tuesday, October 2, 2012

Zindagi..Kab Zioge ???


ज़िंदगी....कब ज़िओगे ??? 


"ज़िंदगी"! एक खुशनुमा शब्द 

जिसके नाम से ही,जीने का 

एहसास हो जाता है ! 

उल्लास का,खुशी का, लुत्फ़ उठाने का 

नाम ही तो ......"ज़िंदगी" ! 

लेकिन...वो क्या था....?? 

जब मैने, जीते हुओ को भी 

घुट-घुटकर मरते देखा था.. 

कहीं "ज़िंदगी"......................... 

"मौत की शुरुआत" तो नहीं???? 



कई बरस पहले लिखी मेरी ये पंक्तियाँ, आज भी कितनी प्रासंगिक लगती हैं ! कितने ही लोग हैं,जो रोज़ सुबह एक सपने के साथ जागते हैं; और सूर्यास्त होने तक अपने उस नन्हे सपने के साथ उदासीन से नींद की गोद में समा जाते हैं. अगली सुबह फिर वही रोना....! जी तो रहे हैं, पर जी नहीं पा रहे ! सब इस "जी" का ही खेल है ,जी ! लग जाए, तो भी मुश्किल और ना लगे तो और भी ! बहरहाल, यहाँ हम काम के सन्दर्भ में "जी" का इस्तेमाल कर रहे हैं ! आपने, कुछ और ही समझा था ना !! चलेगा, होता है !!! 





अपना काम ज़िम्मेदारी से निभाना तो बहुत ही अच्छी बात है, पर उसमें डूबकर अपने आसपास की दुनिया की तरफ जो नज़र भी उठाकर नहीं देख पाए, तो ये जीना भी क्या जीना !! पैसा कमाना ही ज़िंदगी का एकमात्र उद्देश्य रह गया दिखता है. हर वक़्त, हर इंसान के दिलो-दिमाग़ पर बस यही धुन सवार है...पैसा,पैसा,पैसा.... 



ग़रीब होना ज़्यादा अच्छा! उन्हें सिर्फ़ दो वक़्त की रोटी की ही चिंता होती है. मिल गई; तो बड़े ही चैन की नींद सो जाते हैं. उन्हें सोने के लिए नींद की गोलियों का सहारा नहीं लेना पड़ता. ना ही बैंक-बैलेंस की चिंता! जीने के लिए चाहिए ही क्या ? खाना,एक घर, बीमारी में लगाने को कुछ पैसे और चलो घूमने के लिए एक गाड़ी भी !मेरे लिए तो एक कार का होना ही बहुत है, काम ही क्या है उस कार का;आपको सर्दी, गर्मी, बारिश के प्रकोप से बचाना! अब वो मारुति हो या फ़ेरारी क्या फ़र्क पड़ता है! अंततः है तो वही चार पहिए वाला आवागमन का साधन! यहाँ मेरा इरादा किसी ब्रांड का अपमान करना नहीं, सिर्फ़ व्यक़्तिगत राय है! तरह-तरह के फोन गये हैं मार्केट में. कुछ फल के नाम लगते हैं और कुछ दवाई से ! ब्लेकबेरी और टेबलेट. ये भी कोई नाम हुए! अब सच में ही 'दुनिया अपनी ज़ेब में' गई है. पर समझ नहीं आता,कि ये वाकई ज़िंदगी की ज़रूरतें हैं...या कि यूँ ही बस चाहिए! 


परिवार और दोस्तों से हम तब भी जुड़े थे, शायद और बेहतर तरीके से जुड़े थे; जब इन तथाकथित उत्पादों का जन्म भी नहीं हुआ था. पत्र के इंतज़ार में दस-बारह दिन आसानी से काट लिया करते थे और अब अगर दस मिनिट में मेसेज का जवाब नहीं आए, तो लोगों के ब्रेक-अप हो जाया करते हैं. मेसेज भी क्या हैं, टुकड़े हैं..समझ जाए तो किस्मत है जी. इसीलिए रिश्ते भी 'एस एम एस' बन गये हैं. मेरी भाषा में 'सब मुरझाए से' ! 



लीजिए...फिर विषय से भटक गये. बात पैसे कमाने की थी...तो मेरा तो यही मानना है. कोई भी हो सब आटे की ही बनी रोटी खाते हैं, किसी के में भी सोने-चाँदी का पाउडर नहीं लगता. फिर दिन-रात की मारामारी क्यूँ? तनाव में क्यूँ जीना? फ़िक्र किस बात की? होड़ किससे से है? चैन से जियो, खुशियाँ बाँटो! सोचो ज़रा..क्या मतलब ऐसे जीने का..जिसमें वक़्त ही नहीं,किसी से बात करने का, पलटकर देखने का, खुशी के पल साथ बिताने का, यूँ ही बेवजह मुस्कुराने का! क्यूँ हम सभी सिर्फ़ पैसा कमाने में मस्त हैं, और आज अपनों तक पहुँचने की सारी लाइनें व्यस्त हैं........!!!! 


साथ ना जाएगा तेरे 

ज़मीन,ज़ायदाद या झूठी शान. 
जीकर भी क्या जिए वो 
जो बन ना सके, एक इंसान ! 
Photo दिलों में रह जाएँगी, बस 
यादें ही होकर, अमर. 
और खाली पड़ा रहेगा,ये 
टूटा,खंडहर सा मकान !  
राज करेंगें वो,तुम्हारी 
मेहनत की भूमि पर. 
जिसके लिए, ता-उम्र तुम 
देते रहे इम्तिहान ! 
क्या फ़र्क रहा,तुझमें 
और उस ग़रीब में ? 
अंत में,तेरे हिस्से भी तो 
वही राख और वही शमशान..!!!! 
प्रीति'अज्ञात' 

प्रीति'अज्ञात' 

2 comments:

  1. awesome di, jivan ke vaastvik arth ko logo tak pahunchaya hai. jise jaankar bhi log anjaan hai aur paise ki daud me first aana chahte hai.

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    1. Thanx...bas koshish ki hai....!! Prerna milti rahegi..likhti rahungi..!!

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