संस्कारी समाज में
बलत्कृत औरतें
अब कभी नहीं कर सकतीं प्रेम
कि भद्र प्रेमियों के लिए जुगुप्सा का कारण,
शर्म, अभिशाप का विषय है उनकी उपस्थिति
और विवश हो ढूँढनी पड़ती है इन सच्चे प्रेमियों को
हर माह इक नई देह
अस्वीकृत है इन औरतों का खुलकर हँसना- बोलना
उस पर सामान्य रह,
लोगों के बीच दोबारा जीने की कोशिश?
ओह! नितांत अभद्र है, अशिष्ट है, व्यभिचार है!
निर्लज्जता है, अश्लीलता है....अस्वीकार है!
सुन रही हो न स्त्रियों!
वे कहते हैं...
तुम जैसों का जीना
किसी वैश्या से भी कहीं ज्यादा दुश्वार है!
कि बलत्कृत औरत का कोई हो ही नहीं सकता
सिवाय छलनी देह और कुचली आत्मा के!
तो क्या हर बलत्कृत औरत को
उसके दोस्त, परिवार वालों और प्रेमी
की तिरस्कृत निग़ाहों के
तिल-तिल मार डालने से बहुत पहले
सारा स्नेह, ममता, मोह त्याग
स्वतः ही मर जाना चाहिए सदैव?
या फिर यूँ हो कि
न्याय की प्रतीक्षा कर गुज़र जाने से बेहतर
किसी रोज़ वो भी
पथरीले बीहड़ में छलाँग लगाए
और फूलन बन जाए!
- प्रीति 'अज्ञात'
#फूलन देवी, पैदा नहीं होती....समाज बनाता है!
तस्वीर: गूगल से साभार