बच्चों की नन्ही उम्मीदें अब
टूटे सपने सा गिरती हैं....
भाई की खुशनुमा यादें भी
कितनी उदास करती है.....
बहिनों के दिलों में, उम्र भर की
टीस बन दरकती है........
दोस्तों के संग की हँसी
मायूस सी मुस्कान में बदलती है..
हमसफ़र की बेबसी,
उसकी सूनी आँखें बयाँ करती हैं...
ना मिल पाने की कसक
उन दिलों को कितना ख़टकती है...
शमशान कर देती हैं.......
एक 'मौत' कितने ही रिश्ते
'अनाथ' करती है..........!!!!!
प्रीति 'अज्ञात'