सितम पर सितम रोज ढाता रहा
वक़्त हँसता रहा मुस्कुराता रहा
तेज क़दमों से वो दौड़कर चल दिया
काट उस डाल को, जिसने था फल दिया
घर ये हैरान है, सब परेशान हैं
आखिर ज़ख्मों को क्यूँ नोच खाता रहा
वक़्त हँसता रहा.............
अपनी मिट्टी को छोड़ा शहर के लिए
चाँद निकला था बस इक पहर के लिए
वो आसमां की उड़ानों में मशग़ूल था
बूढ़ा बरगद कहीं बड़बड़ाता रहा
वक़्त हँसता रहा. .........
जो मायूस ख़्वाहिश दबी थी कहीं
सहमी अब दुबक के छुपी है यहीं
जबसे जाना ए मौत,तेरे फरमान को
दिल, सीने से निकला और जाता रहा
वक़्त हँसता रहा मुस्कुराता रहा.......!
- प्रीति 'अज्ञात'
वक़्त हँसता रहा मुस्कुराता रहा
तेज क़दमों से वो दौड़कर चल दिया
काट उस डाल को, जिसने था फल दिया
घर ये हैरान है, सब परेशान हैं
आखिर ज़ख्मों को क्यूँ नोच खाता रहा
वक़्त हँसता रहा.............
अपनी मिट्टी को छोड़ा शहर के लिए
चाँद निकला था बस इक पहर के लिए
वो आसमां की उड़ानों में मशग़ूल था
बूढ़ा बरगद कहीं बड़बड़ाता रहा
वक़्त हँसता रहा. .........
जो मायूस ख़्वाहिश दबी थी कहीं
सहमी अब दुबक के छुपी है यहीं
जबसे जाना ए मौत,तेरे फरमान को
दिल, सीने से निकला और जाता रहा
वक़्त हँसता रहा मुस्कुराता रहा.......!
- प्रीति 'अज्ञात'
सब कुछ वक़्त के हो हाथ तो है ... होना और न होना सभी कुछ ... भावपूर्ण रचना ....
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