Monday, May 23, 2016

अजी, थोड़ा तो जी लीजिए!

किसमें, कितना दोष है
छोड़ ये हिसाब अब 
किसके काम आ सके 
बस इसपे गौर कीजिये 
अजी, थोड़ा तो......... 

ज़िन्दगी के प्याले में 
ग़म और ख़ुशी संग हैं 
चुस्कियों के साथ फिर 
दोनों का मजा लीजिए 
अजी, थोड़ा तो......... 

दिल का क्या, ये गैर है 
इसका न मलाल कर
जो टूटने का दर्द है
बिखरों को जोड़ा कीजिये  
अजी, थोड़ा तो......... 

जो ज़ख्म पे मरहम रखे  
उसकी आस छोड़कर
वक़्त के हिसाब से 
चेहरे को सजा लीजिए
अजी, थोड़ा तो.........
 
मेला कहो सर्कस इसे
ये खेल दौड़भाग का 
अंत, फिर शुरुआत है 
खैर.. जाने भी दीजिये  
अजी, थोड़ा तो जी लीजिए!
© 2016 प्रीति 'अज्ञात'. सर्वाधिकार सुरक्षित 

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