अबके कुछ तो ख़ास हुआ है
जीने का एहसास हुआ है
चोरों ने फिर बदली वर्दी
देश में फिर बदलाव हुआ है
ख़ूब बंटी है रात में दारू
क्या कोई चुनाव हुआ है
सूख गया बारिश में नहाकर
खेत कोई बर्बाद हुआ है
चाल इश्क़ में चले सियासी
कौन यहाँ आबाद हुआ है
सोख रहा है लहू तिरंगा
सरहद पर संवाद हुआ है
- प्रीति 'अज्ञात'
चौथे दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल (DIFF 2015) के लिए मेरी यह रचना चयनित हुई थी.
इस फेस्टिवल में फिल्म के साथ-साथ कला और साहित्य को भी प्रोत्साहित किया जाता है. यह कार्यक्रम 5-10 दिसंबर 2015 के बीच दिल्ली में संपन्न हुआ. वहाँ तो जाना न हो पाया, पर उनकी पुस्तक की तस्वीर साझा कर रही हूँ.
लाजवाब शेरोन से सजी है ये ग़ज़ल .. बधाई
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