तुम्हारे मेरे बीच
एक ख़्याल भर का
स्वप्निल रिश्ता था
जो सहलाता, दुलराता
जीने का प्रयोजन दिखाता
'प्रयोजन' जो न था पहले जब
जीवन तो तब भी था
तो अब क्यूँ है असहज
सब कुछ
तुम तब भी नहीं थे
तुम अब भी नहीं हो
तुम न होगे कभी
एक भ्रम जो
पलता रहा
वर्षों से
टूटा ऐसे, ज्यों
शाख़ से जुड़ा पत्ता
उड़ता गया आँधी संग
माला से बिंधा मोती
बिखरता रहा जमीं पर
आकाश से बिछुड़ा तारा
विलुप्त हवाओं में
गहरे दुःख के साथ
क्षण भर देखा तो गया इन्हें
पर न आ सकी
इनके हिस्से
कभी कोई दुआ
न पीड़ा का हुआ बंटवारा
न मिला कोई भी जवाब
बस अस्थियों की तरह
अंतिम समय में
चुन लिए गए
शोक-सभा में
नियमानुसार दोहराने को
वही चुनिंदा ख़्वाब
-प्रीति 'अज्ञात'
Bahut sumdsr
ReplyDeletewow very nice..happy new year2017
ReplyDeletewww.shayariimages2017.com